किसानों की आय दोगुना करने के लिए कृषि लागत खर्च घटाना जरूरी है, लेकिन सरकार सस्ते व उन्नत बीज उपलब्ध कराने में नाकाम रही है। बीज की समस्या का समाधान करने के लिए गठित बीज विकास निगम अपेक्षा पर खरा नहीं उतर पा रहा है। उन्नत बीज पाने के लिए किसानों को निजी व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भरोसे रहना पड़ रहा है और मजबूरन महंगा बीज खरीदना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश बीज एवं तराई विकास निगम का मुख्यालय उत्तराखंड चले जाने के बाद 20 जून 2001 को उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम की स्थापना की गई। इसके जरिये 18 फसलों की 195 प्रजातियों के उन्नत बीजों का उत्पादन किया जा रहा है। विवादों में घिरे बीज विकास निगम के तीन वर्ष के आंकड़ों पर गौर करें तो यह किसानों की जरूरतें पूरी करने में नाकाम रहा। इतना ही नहीं, वर्ष 2014-15 के बीज उत्पादन के आंकड़े की पूर्ति भी नहीं हो पायी। वर्ष 2014-15 की तुलना में लगभग 14,9,692 क्विंटल बीज कम उत्पादित हुआ।
महंगाई के साथ पैदावार का भी खतरा
निजी कंपनियों के बीज प्रयोग करने से किसानों को दोहरा संकट होता है। बीज अत्यधिक महंगा होने के अलावा उससे अपेक्षित पैदावार नहीं हो पाने का खतरा बना रहता है। बिजनौर के किसान सुरेश पाल सिंह का कहना है कि उन्होंने एक नामचीन कंपनी से धान का बीज खरीदा। यह सामान्य बीजों से दोगुना महंगा था, लेकिन जब पैदावार अपेक्षित नहीं निकली तो खुद को ठगा महसूस किया। विक्रेता से शिकायत का कोई नतीजा नहीं निकला।
कारगर नहीं हो सकी बीज ग्राम योजना
किसानों को अपने क्षेत्र में ही उन्नत बीज उपलब्ध कराने के लिए बीज ग्राम स्थापित करने की योजना भी असरदार नहीं हो सकी। किसानों को पर्याप्त प्रमाणित बीज वितरित नहीं हो सका। वर्ष 2015 की तुलना में वर्ष 2017 में प्रमाणित बीज वितरण की मात्रा घटी है। कृषि विभाग के एक पूर्व निदेशक का कहना है कि किसानों को उन्नत बीज की उपलब्धता हकीकत में बेहद कम लेकिन, कागजों में जरूर हुई।
तीन वर्षों में बीज उत्पादन की स्थिति
फसल 2014-15, 2015-16, 2016-17
गेहूं 607198, 490162, 474645,
धान 23136, 17275, 13125,
मटर 23310, 5048, 8797,
चना 9721, 594, 8784,
तिल 168, 789, 71,
कुल 673519, 519935, 523827,
(नोट-मात्रा क्विंटल में)
निगम द्वारा उत्पादित फसलों का बीज
- खरीफ-धान, मक्का, बाजरा,अरहर, उर्द, मूंग, ज्वार, मूंगफली, सोयाबीन व तिल।
- रबी-गेहूं, मटर, चना, मसूर, राई, तोरिया, अलसी व जौ।