पहली बार उपचुनाव लड़ने का फैसला बहुजन समाज पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। दूसरी ओर हार के बावजूद समाजवादी पार्टी सुकून महसूस कर सकती है क्योंकि गठबंधन टूटने के बाद उसने बसपा से अधिक वोट हासिल किए हैं।
हमीरपुर विधान सभा क्षेत्र की चुनावी परीक्षा में बसपा वर्ष 2017 का प्रदर्शन भी न दोहरा सकी और दलित मुस्लिम फार्मूला भी कारगर सिद्ध न हो सका। वर्ष 2017 में 60543 वोट हासिल करने वाली बसपा ढाई वर्ष बाद आधे से भी कम 28798 वोटों में सिमट गई। वोटों में गिरावट को बसपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इसके चलते मिशन 2022 भी प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है। एक पूर्व विधायक का कहना है कि पार्टी से जमीनी नेताओं की विदाई का असर दिखने लगा है। चुनाव जीतने के लिए जमीनी कार्यकर्ताओं को ही मैदान में उतारना जरूरी होता है। बसपा ने समर्पित कार्यकर्ता माने जाने वाले नौशाद अली पर दांव लगाया, लेकिन वह वोटरों को लुभाने में नाकाम रहे।
बसपा ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के मुद्दे पर अन्य विपक्षी दलों से अलग रुख अपनाया। पार्टी के एक कोआर्डिनेटर का कहना है कि इससे भाजपा को समर्थन देने जैसा संदेश गया और इससे मुस्लिम वोटरों में संदेह का वातावरण बना। इस मसले पर मौन साधे रहना बेहतर होता।
अभी उत्तर प्रदेश में 11 सीटों पर उपचुनाव होना है, लेकिन सपा ने जिस तरह हमीरपुर में बसपा से अधिक वोट बटोरने और भाजपा से मुख्य मुकाबले में रहने में कामयाबी पाई है, इसका आने वाले चुनावों में भी नुकसान संभव है।
हालांकि सपा को 2017 विधानसभा चुनाव की तुलना में कम वोट मिले हैं फिर भी बसपा से बढ़त मिलना उसका मनोबल बढ़ाने वाला रहा। सपा उम्मीदवार डॉ. मनोज कुमार प्रजापति वर्ष 2017 में 62233 वोट पाने में कामयाब रहे थे परंतु ढाई वर्ष के अंतराल में उनके वोट घटकर 56542 रह गए। वोटों में गिरावट को सपा कम मतदान होना व मौसम की खराबी को मान रही है। सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि भाजपा के खिलाफ माहौल बना हुआ है। इस कारण मतदान प्रतिशत में कमी हुई और उनके वोट भी कम हुए। बसपा का तीसरे स्थान लुढ़कना और 30 हजार से भी कम वोट पाना सपा के लिए राहत भरा है। सपाइयों का कहना है कि चुनाव परिणाम लोगों द्वारा बसपा को गठबंधन तोड़ने का दोषी स्वीकारने का संकेत देते है।
चुनाव नतीजे ने भाजपा को किया चौकन्ना
हमीरपुर उप चुनाव में जीत हासिल करने के बाद भाजपा संगठन और सरकार ने जनता के प्रति आभार जताने के साथ ही कार्यकर्ताओं का भी हौसला बढ़ाया है। हालांकि चुनाव नतीजे ने संकेत दे दिया है कि यह वक्त इतराने का नहीं है। इसीलिए भाजपा अंदरखाने चौकन्ना हो गई है। मतदान का प्रतिशत घटने की वजह से वोट तो सभी दलों के कम हुए हैं लेकिन, भाजपा को सबसे ज्यादा झटका लगा है। भाजपा उम्मीदवार ने वर्ष 2017 के चुनाव में एक लाख दस हजार से अधिक वोट हासिल किए थे जबकि उसके सापेक्ष अबकी बार पार्टी को 36 हजार से ज्यादा वोटों का घाटा हुआ है। यह स्थिति तब है जब 2017 में निषाद पार्टी ने हमीरपुर में चुनाव लड़ा था जबकि इस बार यह पार्टी भाजपा के साथ खड़ी है। इस मुकाबले में सपा उम्मीदवार को पिछली बार की अपेक्षा सिर्फ 5691 मतों की ही क्षति हुई है। बसपा को 31 हजार से अधिक वोटों की चपत लगी है। वोटों के आंकड़ों की समीक्षा करें तो भाजपा के लिए यह नतीजे सावधान करने वाले हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि पार्टी की आंतरिक समीक्षा की जरूरत है।