काशी को वैसे भी मिनी बंगाल कहा ही जाता है, उसी क्रम में काशी में नवरात्र पर बंगाली परंपराओं का क्रम भी शनिवार से शुरू हो गया है। नवरात्र सप्तमी पर बंगीय पूजा पंडालों में रस्म के मुताबिक नव पत्रिका प्रवेश का अनुष्ठान शनिवार को किया गया। नौ वनस्पतियों के पत्तों में बंधे केले के तने को देवी रूप में ढाल कर ‘कोलार बोऊ’ मान कर गंगा स्नान कराया गया।
गंगा स्नान के बाद ढाक की थाप से गूंजती शोभायात्रा के साथ पूजा मंडपों में इसे देवी के मूल स्वरूप में स्थापित किया गया। भगवती को सप्तमी विहित पूजाएं और प्रथम पुष्पांजलि भेंट की गई। अब दिन भर भोग प्रसाद सहभोज के कार्यक्रम चलेंगे तो रात तक धुनूचि नृत्य (धूप नृत्य) में शामिल होकर महिला-पुरुष और बच्चे ढाक की थाप पर थिरकेंगे। इसी के साथ ही यह आयोजन विजय दशमी पर सिंदूर खेला के साथ समाप्त होगा।