सुन्नी वक्फ बोर्ड की बहस पूरी, आज हिंदू पक्ष देगा मुस्लिम पक्ष की दलीलों का जवाब

अयोध्या राम जन्मभूमि पर मस्जिद का दावा करते हुए एकाधिकार और मालिकाना हक मांग रहे मुस्लिम पक्ष से सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अगर वहां हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार था तो क्या इससे मुसलमानों का एकाधिकार का दावा कमजोर नहीं हो जाता। सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों के लगातार सवालों से धवन झल्ला गए और कहा कोर्ट सिर्फ उन्हीं से सवाल पूछता है।

सुन्नी वक्फ बोर्ड की बहस पूरी

सोमवार को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपनी अपील पर बहस पूरी कर ली। मंगलवार को हिंदू पक्ष उनकी दलीलों का जवाब देगा।

सुन्नी वक्फ बोर्ड का विवादित स्थान पर मालिकाना हक का दावा

यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से विवादित स्थान पर मालिकाना हक का दावा करते हुए राजीव ने कहा कि वहां 1528 से जबसे मस्जिद बनी है सिर्फ मुसलमानों का ही अधिकार रहा है। मुसलमान ही उस जगह के मालिक हैं। उनका मुकदमा समयबाधित नहीं है।

यह तो इतिहास दोबारा लिखने जैसा

धवन ने कहा कि कोर्ट को मुगल शासन और उसकी वैधानिकता पर नहीं विचार करना चाहिए। यह एक तरह से इतिहास को दोबारा लिखना होगा इससे पिटारा खुल जाएगा। ऐसा नहीं होना चाहिए। क्या दिल्ली में कोई नया शासक आये तो नया इतिहास लिखा जाए। हिन्दुस्तान और यूरोप में अंतर है यहां बहुत युद्ध हुए और जीते गए। उन्होंने अशोक का भी उदाहरण दिया।

धवन की इस्लामिक लॉ के कम ज्ञान की टिप्पणी पर पीएन मिश्रा का ऐतराज

धवन ने कहा कि इस्लाम 15वीं सदी का है। कुछ चीजें कुरान और हदीस से चुन कर यह नहीं कहा जा सकता कि कुरान के खिलाफ काम किया गया। यहां लोगों को इस्लामिक लॉ का सीमित ज्ञान है और वे सवाल उठा रहे हैं। इस पर राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति की ओर से पेश वकील पीएन मिश्रा ने ऐतराज जताया। मिश्रा ने कहा कि धवन को कम ज्ञान है, तो ये सबके लिए यह बात कैसे कह सकते हैं। हाईकोर्ट ने विचार के तय प्रश्नों में एक प्रश्न रखा था कि क्या मस्जिद इस्लाम के मानकों के मुताबिक है। और इसी पर मैंने बहस की। धवन ने कहा कि हाईकोर्ट की यह प्रश्न तय करना गलती थी।

ढहाए जाने के बाद भी मस्जिद की प्रकृति नहीं बदलती

धवन ने वहां मस्जिद का दावा करते हुए कहा कि मस्जिद हमेशा मस्जिद ही रहती है। 6 दिसंबर 1992 को ढहाए जाने के बावजूद उसकी मस्जिद प्रकृति समाप्त नहीं होगी।

चार सौ साल पहले बनी मस्जिद के नीचे खुदाई करना ठीक नहीं

धवन ने कहा क मस्जिद बनने के 450 साल बाद उसके नीचे खुदाई करके यह पता लगाना ठीक नहीं है कि पहले वहां कुछ था कि नहीं था। उन्होंने हाइकोर्ट के एएसआई से खुदाई कराने के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि अगर इस तरह होगा तो फिर इन लोगों का कहना है कि 500 मस्जिदें मंदिर तोड़ कर बनाई गईं।

दोबारा बनाई जाए मस्जिद

धवन ने कहा कि कोर्ट अगर वैकल्पिक मांग पूछ रहा है तो उनकी यही मांग है कि वहां 5 दिसंबर 1992 की स्थिति बहाल की जाए। दोबारा मस्जिद बनाई जाए। उन्होंने 6 दिसंबर की घटना की निंदा की।

यूं चले सवाल-जवाब, झल्लाए धवन

राजीव धवन – 1857 के बाद के रिकार्ड से साफ कि अथारिटी ने मुसलमानों के अधिकार को वहां मान्यता दी है। बाबर द्वारा मस्जिद को दिए जा रहे अनुदान को ब्रिटिश सरकार ने भी जारी रखा था।

राजीव धवन – 1886 में हिन्दुओं ने मुकदमा में मालिकाना हक का दावा किया था लेकिन कोर्ट ने दावा नहीं माना था।

जस्टिस अशोक भूषण – उस मुकदमें में मालिकाना हक नहीं मांगा गया था। चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाजत मांगी गई थी।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ – वह मुकदमा मालिक घोषित करने की मांग का नहीं था। राजीव धवन – तो मंदिर बनाने की इजाजत का मतलब क्या होता है। निर्मोही अखाड़ा का सिर्फ पूजा प्रबंधन का अधिकार था।

राजीव धवन – मुसलमानों का वहां कभी भी मालिकाना हक समाप्त नहीं हुआ।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ – बाहरी अहाते में हिन्दुओं का कब्जा था। इस केस में यह स्वीकार्य बात है 1855 के आसपास वहां राम चबूतरा बना। पूजा की इजाजत दी गई।

राजीव धवन – मुसलमान लगातार मुख्य द्वारा का उपयोग करते थे।

जस्टिस एसए बोबडे – अगर उनके पास पूजा का अधिकार था तो क्या इससे आपका एकाधिकार का दावा कमजोर नहीं होता।

राजीव धवन – लंबे समय तक उस जगह का उपभोग करने के कारण उनके पास पूजा का अधिकार था। लेकिन मालिकाना हक नहीं था।

राजीव धवन – अगर कोई मेरे घर आये और कहे कि क्या मै आपके यहां हाथ धो सकता हूं और मै उसे इसकी इजाजत दे दूं। वह रोजाना पांच बार हाथ धोने आए तो क्या वह मेरे घर का मालिक हो जाएगा।

जस्टिस एसए बोबडे – लेकिन कब तक यह जारी रह सकता है

राजीव धवन – यह अधिकार कितना भी लंबा हो सकता है

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ – मामले में कहा गया है कि बैरागी वहां बाहरी अहाते में रहते थे।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ – वहां 1855 में जो रेलिंग लगाई गई थी वह वहां संपत्ति के बंटवारे के लिए नहीं थी। वह रेलिंग हिन्दू और मुसलमान को अलग करने के लिए थी।

राजीव धवन – ऐसा कानून व्यवस्था के लिए किया गया था।

राजीव धवन – यह सवाल तो हिन्दू पक्ष से पूछा जाना चाहिए था। इसके जवाब की जिम्मेदारी तो इन पर बनती है।

राजीव धवन – इस केस में कोर्ट मुझसे ही सवाल पूछता है। इन लोगों (हिन्दू पक्ष) से नहीं पूछता

रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन – इस तरह की बात नहीं की जा सकती

रामलला के वकील के. परासरन – ये कोर्ट से ऐसे सवाल नहीं कर सकते।

राजीव धवन – मुझसे सवाल पूछे जाते हैं और मैं उनका जवाब देने के लिए प्रतिबद्ध हूं।

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