कश्मीर से अलग होकर केंद्र शासित प्रदेश बने लद्दाख की सात दशक की जद्दोजहद आज आखिरकार अपने मुकाम पर पहुंच ही गर्इ। पूर्व रक्षा सचिव आरके माथुर ने आज सुबह सिंधु संस्कृति केंद्र आयोजित भव्य समारोह के दौरान चीफ जस्टिस जम्मू कश्मीर गीता मित्तल से शपथ ग्रहण कर केंद्र शासित लद्दाख के पहले उपराज्यपाल के रूप में कमान संभाल ली। यह दिन देखने के लिए लद्दाख के लोगों की तीन पीढ़ियों ने संघर्ष किया है।
श्रीनगर से करीब चार सौ किलोमीटर दूर लद्दाख का लेह जिला धर्म, भाषा, संस्कृति व सोच के मामले में अलग है। लद्दाख में जम्मू कश्मीर का 70 फीसद क्षेत्र है। भारी बर्फबारी के कारण लद्दाख साल में छह महीने शेष देश से सड़क मार्ग से कटा रहता है। यह इलाका दो ऐसे देशों पाक व पीन से सीमाएं साझा करता है, जिनकी नीयत पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ऐसे में इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाना समय की मांग थी। ऐसे में लेह ने ऑटोनामस हिल डेवलपमेंट काउंसिल बनाने के बाद सिर्फ तिरंगे को लहराने का फैसला कर करीब ढाई दशक पहले ही जम्मू कश्मीर सरकार का झंडा उतार दिया था।
सबसे पहले धर्मगुरु कुशाक बकुला ने उठाई थी मांग : देश में जम्मू कश्मीर के विलय के बाद लद्दाख के धर्मगुरु कुशाक बकुला पहले ऐसे लद्दाखी थे, जिन्होंने केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग बुलंद की थी। दो बार लद्दाख से कांग्रेस के सांसद रहे बकुला अनुच्छेद 370 के कट्टर विरोधी थे। वर्ष 1967 से 1977 तक सांसद रहे बकुला को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। धर्मगुरु व पूर्व सांसद कुशाक बकुला ने लद्दाख में देशभक्ति की भावना को मजबूत बनाने की बुनियाद भी रखी थी। लद्दाख के शाही परिवार के वंशज कुशाक बकुला रिनपोचे को दलाईलामा ने बौद्ध धर्मगुरु बकुला अरहट का अवतार करार दिया था। वर्ष 1962 में कुशाक ने भारतीय सेना को लद्दाख के पैथुब मठ को सैन्य अस्पताल में परिवर्तित करने की इजाजत दी थी। कुशाक बकुला ने मंगोलिया व रूस में बौद्ध धर्म को मजबूत किया। वह मंगोलिया में भारत के राजदूत रहे।
लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन ने भी छेड़ी थी मुहिम : वर्ष 1949 में लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन ने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मुहिम छेड़ी थी। चार मई 1949 को लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन के प्रधान छिवांग रिगजिन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को ज्ञापन सौंपा था कि केंद्र सरकार लद्दाख को अपने नियंत्रण में रखे।
केंद्र शासित प्रदेश की मांग को लेकर लड़े गए हैं चुनाव : केंद्र शासित प्रदेश की मांग को लेकर लेह व कारगिल जिलों में राजनीतिक पार्टियों के साथ लोग भी एकजुट थे। वर्ष 2002 में लद्दाख यूनियन टेरेटरी फ्रंट के गठन के साथ इस मांग को लेकर सियासत तेज हो गई थी। वर्ष 2005 में लद्दाख यूनियन टेरेटरी फ्रंट ने लेह हिल डेवलपमेंट काउंसिल की 26 में से 24 सीटें जीत ली थी। इसी मुद्दे को लेकर वर्ष 2004, 2014 व 2019 में लद्दाख ने सांसद को जिताकर दिल्ली भेजा था। वर्ष 2004 में लद्दाख यूनियन टेरेटरी फ्रंट के उम्मीदवार थुप्स्तन छिवांग सांसद बने थे। वर्ष 2014 में वह भाजपा उम्मीदवार के रूप में लद्दाख से फिर सांसद बने। अब वर्ष 2019 में यूटी की मांग को लेकर भाजपा के जामियांग सीरिंग नांग्याल सांसद हैं।
लद्दाख यूनियन टेरेटरी बनने के हीरो हैं छिवांग : छिवांग लद्दाख यूनियन टेरेटरी बनने के हीरो हैं। छिवांग ने वर्ष 1989 में लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन की कमान संभाली थी। उन्होंने वर्ष 2002 में लद्दाख यूनियन टेरेटरी फ्रंट बनाने में मुख्य भूमिका निभाई। वर्ष 2010 में यूटी की मांग को पूरा करने के लिए फ्रंट ने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया। भाजपा में आने के बाद वर्ष 2014 में सांसद के रूप में भी छिवांग केंद्र शासित प्रदेश के लिए दबाव बनाते आए। एनडीए के पहले कार्यकाल में जब यह मांग पूरी होती नहीं दिखी तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
नए इतिहास के साक्षी बने जामियांग : लद्दाख के युवा सांसद जामियांग सीरिंग नांग्याल क्षेत्र में नया इतिहास रचे जाने के साक्षी हैं। उन्होंने संसद में जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन के समर्थन में वोट डालकर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखाया। उनका कहना है कि लद्दाख को कमजोर करने के लिए ही विधानसभा की सीटों की संख्या को चार तक सीमित रखा गया।
क्या कहते हैं कारगिलवासी : लेह के साथ कारगिल जिला भी केंद्र शासित प्रदेश बनने से खुश है। कारगिल के युवा गुलाम हसन पाशा का कहना है कि पहले विकास परियोजनाओं के लिए आए फंड को राज्य सरकार अन्य जगहों पर खर्च कर देती थी, जिससे विकास थम जाता था। विधान परिषद के पूर्व चेयरमैन हाजी इनायत अली का कहना है कि शांति व विकास चाहने वाले लोग खुश हैं कि सीधे केंद्र सरकार उनके विकास के फैसले करेगी।