इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में 68500 सहायक अध्यापक भर्ती में मेरिट पर सामान्य वर्ग में चयनित आरक्षित श्रेणी के (एमआरसी) अभ्यर्थियों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने ऐसे अभ्यर्थियों को अगले शिक्षा सत्र 2020 -21 में उनकी वरीयता वाले जिलों में तैनात करने का निर्देश दिया है।
हाई कोर्ट ने कहा कि वर्तमान सत्र में की गई एमआरसी अभ्यर्थियों की तैनाती संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 (1) के विपरीत है। कोर्ट ने मनमाने तरीके से तैनाती का आदेश रद कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने एक हजार से अधिक याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा कि इस आदेश का लाभ एमआरसी (मेरिट में चुने गए आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी) अभ्यर्थियों को ही मिलेगा। इन्हें आरक्षित श्रेणी में मानते हुए वरीयता वाले जिले में इनकी तैनाती की जाए। जो पहले से नियुक्त हो चुके हैं और एमआरसी श्रेणी के हैं, उनके सहित याचीगण तीन माह में अर्जी दें। सरकार उस पर तीन माह के भीतर आदेश जारी करे, जिससे अगले सत्र से पहले उनकी तैनाती हो सके। याचिका के जरिए 31 अगस्त व दो सितंबर 2018 की मेरिट लिस्ट को रद करने और विज्ञापित 68500 पदों पर पुनरीक्षित चयन सूची जारी करने की मांग की गयी थी।
याचियों ने वरीयता जिलों में मेरिट के आधार पर तैनाती की भी मांग की थी। नौ जनवरी 2018 के शासनादेश से सहायक अध्यापकों की भर्ती शुरू की गयी। परीक्षा नियामक प्राधिकारी प्रयागराज ने सामान्य श्रेणी व ओबीसी का कटऑफ 45 प्रतिशत व एससी-एसटी का 40 प्रतिशत घोषित किया। बाद में योग्यता कटऑफ घटाया गया। मेरिट में चयनित आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों उनकी वरीयता के जिलों में नियुक्त नहीं किया गया। इस भर्ती में 41556 अभ्यर्थी सफल घोषित हुए हैं।
शासनादेश के तहत हर श्रेणी के अभ्यर्थियों को उनकी वरीयता के जिले में तैनात किया गया। एमआरसी अभ्यर्थियों के साथ विभेद किया गया। मेरिट में आगे होने के बावजूद इन्हें वरीयता के जिले नहीं मिले और कम मेरिट वाले आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों को वरीयता के जिले आवंटित किए गए। नियुक्तियां दो चरणों में की गयी। पहली में 34660 व दूसरी में 6136 अभ्यर्थियों की नियुक्ति की गई। जब एक ही चयन प्रक्रिया के तहत चयनित थे। सभी ने ज्वाइन कर लिया है लेकिन यह कानून के विपरीत किया गया। केवल एमआरसी अभ्यर्थियों की तैनाती के आदेश रद हुए। उन्हें नए सिरे से तैनाती की जानी है।